झूठे…खोखले….प्रसंग !
जबर्दस्ती थोपी हुयी….विषय-वस्तु!
लडखडाती...बहकती……..…लय !
खुले गलियारों में बिखरे
सूखॆ ,नीरस, बोझिल काले शब्द!
कहीं ये आधुनिक कविता के
कुछ और नाम तो नहीं ?
! !
! !
! !
दिनभर खट कर आये हैं हम
चलें कुछ आराम करें ………..!
यह विमर्श तो ऐसे ही चलता आया है !
चलता रहता है….
और चलता रहेगा…………….!
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