Thursday 13 December 2012

Rubaiyat-E-Jumi : 02


हर धड़कन, हर इक साँस पर  अल्लाह हू-–अल्लाह हू करते हैं हम
दिन में पाँच दफ़ा  या  इलाही, अपने आसुँओ से वुज़ू करते हैं हम
फ़िर भी क्यूँ  सब  काफ़िर-ओ-दिवाना-ओ-बावला कहते  हैं मुझको
हर सू तू है तो क्या बुरा है ग़र जानिब-ए-महबूब रूकू करते हैं हम

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