Thursday 13 December 2012

Rubaiyat-E- Jumi : 03


 
ज़ेहन इश्क़ में सराबोर है पर रूह प्यासा क्यों है,

सर पर सजा है ताज तो हाथों में कलीशा क्यों है,

जो मैं अक़्स-ए-नूर-ए-अनल-हक़ हू मेरे रब,  फ़िर

तबीयत नासाज़, क़ल्ब बेचैन,ज़ीस्त सहमा क्यों है |

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